लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई बड़ी घटनाएं घटी हैं लेकिन एक ऐसी घटना है जिसमें समाजवादी पार्टी के संस्थापक Mulayam Singh Yadav को अपनी जान बचाने के लिए अपना घर तक छोड़कर भागना पड़ा था। 1984 की इस घटना के बारे में काफी कम लोग जानते हैं।
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दरअसल 1984 में विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार ने राज्य में सक्रिय अपराधिक नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए एक सख्त डकैती विरोधी अभियान शुरू किया था। मुलायम सिंह यादव उस समय विधायक और उत्तर प्रदेश लोक दल के महासचिव थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुलायम सिंह यादव को शक के घेरे में ले लिया। उनका मानना था कि मुलायम सिंह यादव के डकैत गिरोह से संबंध थे और उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने फूलन देवी के साथ कई अपराधियों को सुरक्षा प्रदान की और यहां तक कि उनकी लूट का हिस्सा भी लिया।

मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ एनकाउंटर के आदेश दे दिए। यह जानकारी उन्हें इटावा पुलिस द्वारा लीक की गई थी। जब मुलायम सिंह को इस बात का पता लगा तो वह समझ गए कि एक पल की भी देरी जानलेवा हो सकती है। किसी को बताए बिना या फिर कोई योजना बनाए बिना उन्होंने तुरंत इटावा से भागने का फैसला कर लिया।
भागने के लिए एक साइकिल उठाई और गांव-गांव, खेत-खेत होते हुए, किसी न किसी गांव में रात बिताते हुए, चुपचाप दिल्ली पहुंचे, चौधरी चरण सिंह के घर। चौधरी चरण सिंह ने तेजी से और समझदारी से काम किया। उन्होंने सबसे पहले मुलायम सिंह को लोक दल के उत्तर प्रदेश विधायक ग्रुप का नेता घोषित किया। रातों-रात मुलायम सिंह पुलिस के निशाने से एक सुरक्षित नेता बन गए।
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