डेस्क। क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म में बेहद लोकप्रिय है। Christmas Tree का उल्लेख बाइबल में नहीं मिलता है, लेकिन एक बात हैरत में डालती है कि जब क्रिसमस ट्री का उल्लेख बाइबल में नहीं है, फिर भी ईसाई धर्म में क्रिसमस ट्री को इतना खास क्यों माना जाता है? आइए जानते हैं विस्तार से।
यह भी पढ़ें-क्या है ‘क्रिसमस ट्री’ का असली नाम, यीशु से क्या है इसका कनेक्शन, पढ़ें यहां
यह सदाबहार पेड़ सर्दियों में भी हरा रहता है। इसलिए इसे ईसाई धर्म में विश्वास करके अनंत जीवन और पुनरुत्थान (मृत्यु के बाद पुनः जीवित होने की अवधारणा) से जोड़ा गया, जो मसीह की शिक्षाओं और आध्यात्मिक आशा का संकेत माना जाता है। क्रिसमस ट्री की परंपरा यूरोप की प्राचीन लोक-संस्कृतियों से निकली है, जिसे ईसाई धर्म ने अपनाकर यीशु के जन्म दिवस से जोड़ दिया।

जर्मनी में यह प्रथा पुनर्जागरण काल में विकसित हुई, जहां सदाबहार पेड़ों को मोमबत्तियों, सेबों और कागज के फूलों से सजाया जाता था, जो अनंत जीवन और स्वर्ग के प्रतीक थे और फिर यह प्रथा महारानी विक्टोरिया के समय में पूरे यूरोप और दुनिया में फैल गई। क्रिसमस ट्री पर लगी रौशनी और सितारे में यीशु के आने से पहले फैली अज्ञानता और अंधकार के बाद, यीशु के रूप में आया वह दिव्य प्रकाश जो सत्य और ज्ञान लाता है। यह बेथलहम के उस खास तारे की याद दिलाता है जिसने ज्योतिषी को यीशु के जन्मस्थान तक पहुंचाया था।
आज का क्रिसमस ट्री परंपरा 16वीं–17वीं सदी के जर्मनी से शुरू हुआ माना जाता है। लगभग उसी समय से जर्मन परिवारों में सर्दियों के मौसम में ऐवर-ग्रीन फिर्स/पाइन झाड़ी को घर में लाकर सजाने की प्रथा शुरू हुई थी। इसलिए बाइबिल में उल्लेख न होने के बावजूद, यह परंपरा सदियों से परंपराओं में है।
Tag: #nextindiatimes #ChristmasTree #Christmas2025




