नई दिल्ली। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो गए हैं। आज लोकसभा में राष्ट्रीय गीत Vande Mataram को लेकर 10 घंटे की बड़ी चर्चा हो रही है। पीएम मोदी ने चर्चा की शुरुआत की। इसी बीच आइए जानते हैं कि जब जन गण मन से कई साल पहले वंदे मातरम लिखा गया था तब भी यह नेशनल एंथम क्यों नहीं बन पाया?
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बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लगभग 1870 में वंदे मातरम लिखा था। यह स्वतंत्रता संग्राम का एक नारा बन चुका था जिसे ब्रिटिशों ने बहुत ज्यादा क्रांतिकारी होने की वजह से बैन कर दिया था। हालांकि इसकी भावनात्मक और सांस्कृतिक शक्ति के बावजूद भी इस गीत में कुछ ऐसी बातें थी जिन्होंने शुरू से ही विवादों को जन्म दिया। इनमें से एक था भारत को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित करना। इस वजह से कुछ समुदायों ने धार्मिक रूप से इसका बहिष्कार किया।

जब संविधान सभा भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को अंतिम रूप देने के लिए मिली तब समावेशिता पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया जन गण मन भारत की नियति के विधाता यानी एक गैर सांप्रदायिक दिव्य शक्ति के प्रशंसा करता है। जन गण मन किसी भी धर्म के देवी देवता से जुड़ा नहीं था बल्कि पूरे राष्ट्र के उत्साह और विजय का प्रतीक था। इसी वजह से यह सुनिश्चित किया गया कि सभी धर्म के लोग बिना किसी परेशानी के राष्ट्रगान से जुड़ सके।
24 जनवरी 1950 को काफी ज्यादा विचार विमर्श के बाद संविधान सभा ने यह घोषणा की कि जन गण मन भारत का राष्ट्रगान होगा और वंदे मातरम भारत का राष्ट्रीय गीत होगा। इससे वंदे मातरम को समान सम्मान और औपचारिक महत्व मिला।
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