डेस्क। राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर national anthem के 150 वर्षों की स्मृति में विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ एक मंत्र है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है और एक ऊर्जा है। यह गीत मां भारती की आराधना है।
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बता दें ‘वंदे मातरम्…’ वो गीत जो स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज बन गया। जिसने गुलामी की नींद में सोए भारतीयों को जगाया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कलम से निकला ‘वंदे मातरम्’ जब गूंजता, तो सुनने वालों के दिलों में ऐसी क्रांति की लपटें उठतीं कि अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल जाती।
भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय सरकारी नौकरी में थे। उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने एक आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि अब से सभी भारतीयों को ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत गाना अनिवार्य है। अंग्रेजी फरमान के विरोध और इसको जबरन थोपने से आहत होकर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ‘वंदे मातरम्’ लिखा था। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का लिखा गीत वंदे मातरम् 7 नवंबर 1875 को पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में छपा।
सात साल बाद बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय इसे अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया, जोकि 1882 में प्रकाशित हुआ था। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता (मौजूदा कोलकाता) में हुए अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने मंच से वंदे मातरम् गाया। यह पहली बार था, जब यह गीत सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर गाया गया। उस वक्त सभा में मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम हो गई थीं।

20 मई 1906 को बारीसाल ( अब बांग्लादेश में है) में वंद मातरम् जुलूस निकाला, जिसमें 10 हजार से ज्यादा सड़कों पर उतरे थे। इसमें हिंदू और मुस्लिम समेत सभी धर्म और जातियों के लोगों ने वंदे मातरम् के झंडे हाथ में लेकर सड़कों पर मार्च किया था। रंगपुर के एक स्कूल में जब बच्चों ने यह गीत गाया तो अंग्रेजी सरकार ने 200 छात्रों पर 5-5 रुपये का जुर्माना सिर्फ इसलिए लगा दिया कि उन्होंने वंदे मातरम् कहा था। इसके बाद ब्रिटिश हुक्मरानों ने कई स्कूलों में वंदे मातरम् गाने पर पाबंदी लगा दी थी। उस समय छात्रों ने कक्षाएं छोड़ दीं, जुलूस निकाले और पर यह गीत गाना नहीं छोड़ा। कई जगहों पर तो पुलिस ने छात्रों को पीटा और जेल में डाला दिया।
आजादी के बाद संविधान सभा में जन गण मन और वंदे मातरम् दोनों को राष्ट्रीय प्रतीकों के रूप में अपनाने पर पूर्ण सहमति बनी, इस मुद्दे पर कोई बहस नहीं हुई। 24 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के समान दर्जा दिया जाना चाहिए और सम्मान भी बराबर ही होना चाहिए।
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