स्पोर्ट्स डेस्क। लेग बिफोर विकेट (LBW) नियम क्रिकेट के सबसे पुराने और जरूरी नियमों में से एक है। इसे पहली बार 1774 में लागू किया गया था। दरअसल उस वक्त बल्लेबाज गेंद को स्टंप से टकराने से रोकने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल करते थे। इसी बेईमानी पर रोक लगाने के लिए यह नियम क्रिकेट में लाया गया। आइए जानते हैं क्या है इस नियम का इतिहास?
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एलबीडब्ल्यू नियम पहली बार 1774 में लागू किया गया था। उस वक्त बल्लेबाज गेंद को स्टंप से टकराने से रोकने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल करते थे। इसी को रोकने के लिए इस नियम को बनाया गया। शुरुआत में किसी भी बल्लेबाज को एलबीडब्ल्यू आउट देने के लिए यह साबित करना होता था कि उसने जानबूझकर अपने पैरों से गेंद को रोका है लेकिन 1839 में अंपायर के लिए एलबीडब्ल्यू कानून के तहत बल्लेबाजों को बिना इरादे साबित किया आउट करना आसान हो गया।

1980 में इस नियम में एक और संशोधन हुआ। अब बल्लेबाजों को एलबीडब्ल्यू आउट दिया जा सकता था भले ही गेंद ऑफ स्टंप के बाहर पैड़ से टकराई हो लेकिन उन्होंने शॉट लगाने का प्रयास न किया हो। एलबीडब्ल्यू के फैसले के लिए गेंद स्टंप की लाइन पर या फिर ऑफ स्टंप के बाहर पिच पर होनी चाहिए। इसी के साथ बल्लेबाज के शरीर पर स्टंप की सीध में लगनी चाहिए।
साथ ही अगर शॉट लगाने की कोशिश नहीं की गई हो तो ऑफ स्टंप के बाहर शरीर पर लगने पर भी आउट दिया जा सकता है। इसके अलावा अंपायर को इस बात पर भी भरोसा होना चाहिए की गेंद स्टंप से टकराती। एलबीडब्ल्यू क्रिकेट में एक बड़ा नियम है।
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