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Saturday, August 9, 2025

यूपी के इस गांव में नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन, तराईन के युद्ध से जुड़ी है वजह

मुरादनगर। कल जब करोड़ों लोग रक्षाबंधन का स्नेहपर्व मनाएंगे, तब मुरादनगर क्षेत्र के सुराना गांव में भाइयो की कलाई सूनी रह जाएंगी। इस गांव में रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के त्यौहार को अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है।

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दिल्ली मेरठ मार्ग से 14 किलोमीटर दूर हरनंदी नदी के किनारे स्थित सुराना गांव में सैंकड़ों वर्ष से Rakshabandhan का त्योहार नहीं मनाया जाता है, बल्कि यहां के लोग रक्षाबंधन मनाने के स्थान पर इस दिन गांव के लोग सदियों पहले हुए एक नरसंहार का शोक मनाते हैं, जिसकी कड़वीं यादें और उनसे जुड़ी कहानियां लोगों के मानस आज भी जिंदा है।

सुराना गांव मूलरूप से छबड़िया गोत्र यदुवशी अहीरों द्वारा बसाया हुआ बताया जाता है। जो कि सन 1106 के आसपास राजस्थान के अलवर से हरनंद के तट पर आ बसे थे। शौर्यवान जाति होने के चलते सौ और रण शब्द हो जोड़कर गांव नाम सौराणा रखा गया जो कालांतर में सुराना हो गया। 1192 में तराईन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद के हाथों पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद उनकी सेना बचे हुई अहीर यादव सिपाहियों की टुकड़ी ने सुराना गांव में शरण ली थी।

यदुवशियों ने शरणागत सिपाहियों को हवाले करने से इंकार कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप Rakshabandhan के दिन अपनी बहनों से राखी बंधवाकर केसरी बाना पहनकर यदुवशी यौद्धा गौरी की विशाल सेना के सामने जा डटे। हजारों की सेना के सामने सैंकड़ों यदुवंशियों ने लड़ते हुए अपनी कुर्बानी दी। बाद में गौरी के आदेश पर गांव के बचे हुए वृद्धों महिलाओं व बच्चों का नृशंस नरसंहार कर दिया था। नरसंहार के शोकस्वरूप गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं और सुराना गांव में रक्षाबंधन को शोक दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

Tag: #nextindiatimes #Rakshabandhan #uttarpradesh

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