झारखंड। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन (Shibu Soren) का लंबी बीमारी के बाद 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनका राजनीतिक जीवन भी काफी उथल-पुथल भरा रहा है। जब शिबू सोरेन 2004 में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने थे तो उनके खिलाफ 30 साल पुराने एक मामले में गैर-जमानती वारंट जारी हुआ था, जिसके बाद उन्हें अंडरग्राउंड होना पड़ा था। वो केस था- 1975 का चिरूडीह नरसंहार।
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Shibu Soren को ‘दिशोम गुरु’ (देश का गुरु) कहा जाता था। उनको यह दर्जा आदिवासी समुदाय ने उनकी अगुवाई और समर्पण के लिए दिया। ‘दिशोम’ का अर्थ है ‘देश’ या ‘विश्व’ और सोरेन ने आदिवासियों के हक के लिए आजीवन संघर्ष किया। 1972 में JMM की स्थापना कर उन्होंने आदिवासी भूमि, जल और जंगल को गैर-आदिवासियों के शोषण से बचाने का बीड़ा उठाया। उनकी लड़ाई ने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

1975 में चिरूडीह दुमका जिले में हुआ करता था। चिरूडीह में नरसंहार हुआ था, जिसमें 11 लोग मारे गए थे। शिबू सोरेन (Shibu Soren) का दावा था कि वो गरीबों की जमीन वापस दिलाने के लिए अभियान चला रहे थे। बताया जाता है कि एक ओर आदिवासी तीर-कमान लिए हुए थे जबकि दूसरी ओर महाजन थे जो बंदूक लिए हुए थे।
दोनों पक्षों की बीच हिंसक झड़प हुई और चारों ओर चीख-पुकार मची। बाद में पुलिस ने किसी तरह इस हिंसा पर काबू पाया। तब तक 9 मुस्लिम समेत 11 लोग मारे जा चुके थे। इस घटना के बाद शिबू सोरेन (Shibu Soren) आदिवासियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए।
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