डेस्क। सावन माह (Sawan 2025) में भोले के द्वार पर जय जयकार होती है और सावन माह के सभी सोमवार को शिव मंदिरों (Shivling) में भक्तों का सैलाब होता है। जिला कांगड़ा के उपमंडल इंदौरा के तहत डमटाल क्षेत्र से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर काठगढ़ (Kathgarh) न केवल प्रदेश बल्कि देश भर में यह प्रसिद्ध है। यहां हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब राज्यों के शिव भक्त आते हैं।
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हिमाचल व पंजाब के सीमावर्ती एरिया में होने के कारण यहां कई राज्यों के शिव भक्त आते हैं। यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटे हुए हैं। दो भागों में बंटे हुए शिवलिंग (Shivling) स्थायी नहीं है, इन शिवलिंग का मिलन भी होता है। दो भागों में बंटा हुआ शिवलिंग महाशिवरात्री पर्व के दौरान जुड़ जाता है। आठ फीट ऊंचे इस शिवलिंग (Shivling) के दर्शन करने दूर दूर से लोग आते हैं।

सावन माह (Sawan) में दौरान इस मंदिर में पैर रखने की जगह नहीं होती है। पूरा एक माह मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। सावन माह के हर सोमवार को कम से कम 20 से 25 हजार शिव भक्त मंदिर में आते हैं और भोलेनाथ का आशीर्वाद लेते हैं। वहीं सामान्य दिनों में रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु भोलेनाथ के दर शीश नवाते हैं। प्राचीन शिवमंदिर काठगढ़ विश्व विजेता सिकंदर के समय 326 ईसा पूर्व बनाया गया था। सिकंदर जब पंजाब पहुंचा और पंजाब में प्रवेश करने से पूर्व वह मीरथल नामक गांव में अपने पांच हजार सैनिक को लेकर खुले मैदान में विश्राम करने लगा। यहां उसने देखा कि एक फकीर शिवंलिग की पूजा में व्यस्त था।
सिकंदर ने फकीर से कहा कि वह उनके साथ यूनान चलें वह उन्हें दुनिया का हर एशवर्य देंगे। फकीर ने सिकंदर की बात को अनसुना करते हुए कहा आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें। फकीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने टिल्ले पर काठगढ़ महादेव का मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी बनवाई। यहां ब्यास नदी की ओर अष्टकोणीय चबूतरे बनवाए जो आज भी यहां है।
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