नई दिल्ली। 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी (emergency) या आपातकाल लागू हुआ था, इसके पहले देश में एक बड़ी घटना हुई थी जिसने ना सिर्फ पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था, बल्कि एक तरह से पूरे देश में सनसनी पैदा कर दी थी। वह घटना थी इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के चुनाव (election) को रद्द करना। आजाद हिंदुस्तान में यह पहली घटना थी जब किसी प्रधानमंत्री का चुनाव अवैध घोषित किया गया था। कोर्ट में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से दो दिनों तक बहस की गई थी और यह एक अभूतपूर्व घटना थी।
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आपातकाल (emergency) की घोषणा से ठीक पहले 24 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति भवन और विधि मंत्रालय से संविधान की ओरिजन कॉपी मंगवाई थी। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के सलाहकारों ने उन्हें बताया था कि भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने का प्रावधान है। सलाहकारों से बात करने के बाद भी इंदिरा गांधी इसे खुद से पढ़कर और समझकर आश्वस्त होना चाहती थीं। यही कारण है कि उन्होंने असली संविधान की कॉपी मंगवाई और उसके पन्ने खोलकर आर्टिकल 352 पर अपनी नजरें टिकाई।

दरअसल उनके सलाहकारों ने उन्हें आर्टिकल 352 पढ़ने की सलाह दी थी। यही कारण था कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) खुद भी इसे देखकर समझना चाहती थीं। आर्टिकल 352 ही वह प्रावधान था, जिस इंदिरा गांधी ने अपने सलाहकारों से पारिभाषित करने कहा था। जिसके बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली ने बिना किसी हिचक के आपातकाल (emergency) के आदेश पर साइन कर दिए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 352 कहता है कि ‘आंतरिक अशांति’ की स्थिति में देश में आपातकाल (emergency) लागू किया जा सकता है। इस अनुच्छेद के मुताबिक, राष्ट्रपति को अगर लगे कि भारत की सुरक्षा पर आंतरिक अशांति, कोई बाहरी हमला या सशस्त्र विद्रोह हो सकता है, तो इस तरह की स्थिति में आपातकाल घोषित किया जा सकता है।
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