लखनऊ। AXIOM-4 Mission अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गया है। इस मिशन से जुड़ी कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने कहा है कि मौसम 90 फीसदी अनुकूल है। इस मिशन में कई देशों की साझेदारी है। भारत की ओर से शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) मिशन क्रू के हिस्सा हैं। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन और एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष (space) में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं।
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इससे पहले साल 1984 में अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा (astronaut Rakesh Sharma) ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी। इस पूरे मिशन की लागत भारत सरकार खुद वहन कर रही है। जानकारी के अनुसार भारत ने अमेरिका की प्राइवेट स्पेस कंपनी Axiom Space को इस मिशन के लिए करीब 548 करोड़ रुपये तक का भुगतान किया है। यही राशि शुभांशु (Shubhanshu Shukla) की ट्रेनिंग, यात्रा, स्पेस सूट, रिसर्च किट और अन्य जरूरी संसाधनों पर खर्च की जा रही है।
साल 2001 में उनका परिवार उनकी बड़ी बहन शुचि शुक्ला की शादी में व्यस्त था। उधर किशोर शुभांशु कुछ घंटों के लिए गायब हो गए, जिससे उनका परिवार चिंतित हो गया और उसके पिता शंभू दयाल शुक्ला उनके गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार से नाराज़ हो गए। लेकिन जब शुभांशु थके-हारे घर पहुंचे तो घर मौजूद बड़ों के गुस्से से भरे सवालों का सामना करना पड़ा। उस समय उन्होंने अपने परिवार से यह बात छिपायी कि वह बख्शी का तालाब में भारतीय वायुसेना के एयर शो से प्रेरित होकर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा देने के लिए चुपके से भाग गए थे।

भारत के लिए भी ये मिशन बेहद खास है क्योंकि 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष की उड़ान भरने जा रहा है। साल 1984 में राकेश शर्मा सोवियत संघ के सोयुज टी-11 मिशन के तहत अंतरिक्ष में गए थे। उसके बाद से कोई भी भारतीय नागरिक अंतरिक्ष में नहीं गया (भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स अमेरिकी नागरिक थीं)। शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) का ये मिशन इस लंबे अंतराल को खत्म कर रहा है।
ये मिशन सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने के बाद शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) और उनकी टीम लगभग 14 दिनों तक वहां रहेगी। इस दौरान वे माइक्रोग्रैविटी (शून्य गुरुत्वाकर्षण) में कई वैज्ञानिक प्रयोग और शोध करेंगे। इन प्रयोगों का मकसद बायोलॉजी, टेक्नोलॉजी और मानव स्वास्थ्य पर अंतरिक्ष के प्रभावों को समझना है। ये रिसर्च भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों और पृथ्वी पर भी कई वैज्ञानिक सफलताओं का आधार बन सकती है। लॉन्च के लगभग 16 घंटे बाद उनका ड्रैगन कैप्सूल ISS से जुड़ेगा, जिसके बाद उनका असली काम शुरू होगा।
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