लखनऊ में क्यों रहती है बड़े मंगल की धूम, जानें वजह

लखनऊ। राजधानी में 9 मई से बड़ा मंगल पर्व की शुरुआत हो गई है। मंदिरों में सुबह से ही पूजा-पाठ और आरती के लिए के श्रदालुओं के पहुंचने का सिलसिला जारी है। आपको बताते हैं बड़ा मंगल से जुड़ी कुछ प्रचलित मान्यताओं के बारे में जानकारियां कि आखिर क्यों मनाया जाता है बड़ा मंगल?
लखनऊ में बड़ा मंगल मनाने की परम्परा की शुरुआत 400 साल पहले मुगलशासक नवाब मोहम्मद अली शाह ने की थी। बात 1718 की है जब रानी आलिया बेगम अलीगंज इलाके में एक शाही इमारत के लिए कुछ निर्माण कार्य करवा रही थीं। खुदाई के दौरान मजदूरों को हनुमान जी की दो मूर्तियां मिलीं। आलिया बेगम ने कंस्ट्रक्शन एरिया के कोने में कहीं मूर्तियां लगवा दीं अगली रात उसके सपने में उसने सुना इन मूर्तियों को स्थापित करें और आपके पास एक बच्चा पैदा होगा। कुछ दिनों के भीतर आलिया बेगम ने मूर्ति स्थापित कर दी और यह मंदिर है जिसे अब पुराना हनुमान मंदिर अलीगंज के नाम से जाना जाता है। आलिया बेगम को एक बेटा हुआ जो आशीर्वाद से मिला था। उन्होंने उसका नाम मंगत राय फिरोज शाह रखा।
जठमल ने 1752 में नया हनुमान मंदिर बनवाया आलिया बेगम के सेनापति दूसरी प्रतिमा को स्थापना के लिए किसी अन्य स्थान पर ले जा रहे थे। जब वे सभी एक जुलूस में आगे बढ़ रहे थे तभी मूर्ति को ले जाने वाला हाथी एक स्थान पर बैठ गया और आगे बढ़ने से मना कर दिया। जठमल ने मूर्ति को उस स्थान पर स्थापित किया जहां हाथी बैठा था। यह नया हनुमान मंदिर बन गया। जठमल ने मंदिर बनाने के बाद पूजा की।

यह ज्येष्ठ माह (हिंदू कैलेंडर में महीना – आमतौर पर मई / जून की चरम गर्मी) का पहला मंगलवार था। तब से ज्येष्ठ के पहले मंगलवार से यह बड़ा मंगल नया हनुमान मंदिर अलीगंज में मनाया जाता है जहां दूर-दूर से लोग भगवान हनुमान की मनोकामना लेने आते हैं। बड़ा मंगल हिंदू देवता भगवान हनुमान को समर्पित त्योहार लखनऊ के लिए अद्वितीय है क्योंकि यह केवल लखनऊ में होता है और पिछले 400 वर्षों से यहां मनाया जाता है। जैसा कि यह लखनऊ के लिए अद्वितीय है भक्त भगवान हनुमान का आशीर्वाद लेने के लिए पूरे राज्य और यहां तक कि देश के कुछ अन्य हिस्सों से भी आते हैं।
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी भगवान राम से पहली बार प्रभु श्री राम पहली बार ज्येष्ठ महीने के मंगलवार के दिन ही मिले थे। तभी से यह मान्यता है कि इस महीने के सभी मंगलवार के दिनों को बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल के नाम से जाना जाता है। बड़ा मंगल प्रत्येक मंगलवार को हिंदू माह ज्येष्ठ के पहले मंगलवार से अंतिम मंगलवार तक मनाया जाता है।

इतिहासकार योगेश प्रवीन के मुताबिक, लखनऊ में मुगल शासक नवाब मोहम्मद अली शाह के बेटे की कंडिशन बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। उनकी बेगम रूबिया ने अपने बेटे का कई जगह ट्रीटमेंट कराया, लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के हनुमान मंदिर आईं। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने को कहा। बेगम रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। तब उन्होंने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उनका लगाया प्रतीक चिन्ह चांदतारा आज भी मंदिर के गुंबद पर मौजूद है। मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ (जेठ) महीने में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़धनिया (भुने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया। मंदिर के बाहर प्याऊ भी लगवाए। तभी से इस बड़े मंगल की परम्परा की नींव पड़ी।
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