यूपी के इस जिले से हुआ था सृष्टि की रचना का आरम्भ, यहीं 33 कोटि देवी देवताओं ने किया था वास

मिश्रिख। मिश्रित नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र की विश्व विख्यात 84 कोसीय धार्मिक होली परिक्रमा का शुभारम्भ युगो युगो से होता चला आ रहा है। सतयुग में महर्षि दधीचि के द्वारा यह परिक्रमा की गई थी। जिसका अनुसरण हर युग में होता चला आ रहा है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने अपने कुटुंबजनों के साथ इस क्षेत्र की परिक्रमा की थी।

द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के अलावा पाण्डवों द्वारा इस क्षेत्र की परिक्रमा की गई थी। कलयुग में उसी का अनुशरण किया जा रहा है। यह क्षेत्र विश्व का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। यहीं से सृष्टि की रचना का भी आरम्भ होना बताया जाता है। यहीं पर आदि गंगा गोमती नदी के तट पर मनु सतरूपा द्वारा हजारों वर्षों तक कठोर तप किया गया था। इस 84 कोस की भूमि पर 33 कोटि देवी देवताओं ने वास किया है। यहीं पर 88 हजार ऋषियों ने अपने-अपने आश्रम बनाकर कठिन तपस्या भी की है। जिसके प्रमांण मिश्रित और नैमिषारण्य में आज भी मौजूद है।

ऐसे हुआ 84 कोसीय परिक्रमा का शुभारंभ:

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि सतयुग काल में वृत्तासुर नामक दैत्य ने देवलोक पर आक्रमण कर लिया था। देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्तासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया। परन्तु सभी अस्त्र-शस्त्र उसके कठोर शरीर से टकराकर चूर – चूर हो गये। अंत में देवराज इंद्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा और ब्रह्मा-विष्णु व शिव जी शरण में पहुंचे तो तीनों देवताओं ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई शस्त्र नहीं है। जिससे वृत्तासुर दैत्य का वध हो सके। त्रिदेवों की यह बात सुनकर इंद्र मायूस हो गये।

इन्द्र देव की स्थिति को देख कर भगवान शिव ने उन्हें उपाय बताया कि पृथ्वी लोक पर परम तपस्वी महर्षि दधीचि रहते हैं। उन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को इतना कठोर बना लिया है कि उनकी हड्डियों से बज्र नामक अमोघ अस्त्र बनाया जाए तभी वृत्तासुर दैत्य का विनास हो सकता है। उनकी शरण में जाओ और क्षमा याचना करके लोक कल्याण हेतु अस्थियों का दान करने की याचना करो। इन्द्र ने ऐसा ही किया। वह नैमिष क्षेत्र में स्थित उनके आश्रम पर आए और महर्षि दधीचि को पूरा वृतांत बताया और उनसे अस्थियों का दान देने के लिए क्षमा याचना की। परन्तु महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान देने से पहले तीर्थाटन की इच्छा जताई।

33 कोटि (श्रेष्ठ) देवी-देवताओं को यहां 84 कोस की परिधि में दिया गया था स्थान:

इस दौरान महर्षि दधीचि ने इन्द्र से कहा, देवराज मैंने अपने जीवन काल में एक भी तीर्थ नहीं किया है। सिर्फ तप, साधना में ही लीन रहा हूं। मेरी इच्छा है कि संसार के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं के दर्शन कर लूं। फिर अपनी अस्थियों का दान कर दूंगा। यह सुन कर इन्द्र देव सोच में पड़ गये और सोंचा कि महर्षि सभी तीर्थ करने चले गये तो बहुत समय बीत जायेगा। इस पर देवराज इंद्र ने संसार के समस्त तीर्थों और 33 कोटि (श्रेष्ठ) देवी-देवताओं को नैमिषारण्य क्षेत्र में आमंत्रित किया और सभी को 84 कोस की परिधि में अलग अलग स्थान दिया।

महर्षि दधीचि ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को किया था अस्थियों का दान:

महर्षि दधीचि एक-एक कर सभी तीर्थों और देवताओं के दर्शन करते हुए कुछ ही समय में अपने आश्रम पहुंचे। जहां पर सभी तीर्थों के जल को एक सरोवर में मिलाया गया। उसी में स्नान करके फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को गायों से अपने शरीर को चटाकर अस्थियों का दान देवताओ को दे दिया। जिस तीर्थ में संसार के सभी तीर्थों के जल को मिलाया गया। उसे ही आज दधीचि कुंड तीर्थ के नाम से जाना जाता है और जिस जगह पर यह कुंड स्थित है। उस क्षेत्र को मिश्रित के नाम से जाना जाता है। तभी से प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू होने वाले इस क्षेत्र के 84 कोसीय परिक्रमा में लाखों की संख्या में साधू संत व श्रद्धालु भाग लेने आते है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धा भाव से यहां की 84 कोसीय परिक्रमा कर लेता है। वह 84 लाख योनियों के बंधन से मुक्त हो जाता है।

21 मार्च से इस धार्मिक परिक्रमा का होगा शुभारंभ:

20 मार्च सोमवार अमावस्या तिथि से इस धार्मिक परिक्रमा का शुभारम्भ हो गया है। पूर्णिमा तिथि तक सभी परिक्रमार्थी मिश्रित का पंचकोसी परिक्रमा करेगें और पूर्णिमा तिथि को दधीचि कुंड तीर्थ में स्नान करके अपने अपने घरो को प्रस्थान करेंगे।

गंगा-जमुनी तहजीब का प्रत्यक्ष उदाहरण है यह धार्मिक परिक्रमा:

इस धार्मिक परिक्रमा में विशेष बात यह है कि आधी परिक्रमा का प्रतिनिधित्व हरदोई जनपद करता है। आधे क्षेत्र का सीतापुर जनपद करता है। इसमें सभी वर्गो के लोग संत महंतों की सेवा करते हैं। जो गंगा जमुनी तहजीब का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

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