फुलेरा दूज: आज बिना मुहूर्त देखे किसी भी समय कर सकते हैं कोई भी शुभ कार्य

बनारस। आज फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। फुलेरा दूज का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान कृष्ण ने फूलों की होली खेलनी शुरू की थी। यही कारण है कि मथुरा-वृंदावन समेत पूरे ब्रज में फुलेरा दूज से ही होली मनाई जाने लगती है, वहीं ब्रज में इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ फूलों की होली खेली जाती है। राधे-कृष्ण पर जमकर फूल बरसाए जाते हैं।
फुलेरा काफी पुण्य तिथि मानी जाती है और इसलिए इस दिन बड़ी संख्या में शादियां होती हैं और यह तिथि किसी भी तरह के नकारात्मक प्रभाव और दोषों से प्रभावित नहीं होती है। यह तिथि अबूझ मुहूर्त मानी जाती है और इस दिन आप कोई भी शुभ कार्य बिना किसी पंचांग के देखे कर सकते हैं। इस तिथि में साक्षात श्रीकृष्ण का अंश माना जाता है। यह त्योहार लोगों के जीवन में उल्लास और खुशी के साथ उम्मीद लाता है। यह पर्व वसंत पंचमी और होली के बीच फाल्गुन मास में धूमधाम से मनाया जाता है।
फुलेरा दूज मनाने का कारण:
शास्त्रों के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण अधिक व्यस्त थे जिसके कारण काफी लंबे समय तक राधा रानी से नहीं मिल पाए थे। ऐसे में राधा रानी काफी उदास रहने लगी थी। राधा रानी के उदास रहने से प्रकृति पर बुरा असर पड़ने लगा था। ऐसे में पेड़, पौधे, फूल, वन आदि धीरे-धीरे सूखने लगे थे। प्रकृति का ऐसा रूप देखकर भगवान कृष्ण को इस बात का अंदाजा हो गया कि राधा रानी कितना उदास है। ऐसे में श्री कृष्ण राधा रानी से मिलने बरसाना पहुंचे और राधा रानी से मिले। यह देखकर फिर से प्रकृति खिल गई। फिर भगवान कृष्ण से एक फूल तोड़कर राधारानी के ऊपर फेंक दिया। फिर राधारानी से भी एक फूल श्रीकृष्ण के ऊपर फेंक दिया। इसके बाद गोपियों ने भी खुश होकर फूल एक-दूसरे में फेंके। ऐसे हर तरफ फूलों की होली खेली गई। जिस दिन फूलों की होली खेली गई उस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी। इसी के कारण हर साल इस दिन फूलों की होली को फुलेरा दूज के रूप में मनाते हैं।

गुलरियां का प्रयोग होलिका दहन के समय किया जाता है। गुलरियां को गाय के गोबर से गोल-गोल टिक्की आकर देकर उनके बीच में छिद्र बना दिया जाता है। सूखने के बाद उन्हें एक धागे मे पिरो लिया जाता है, जिसे गुलरियों की माला कहा जाता है।
इन गुलरियां के निर्माण के साथ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इन्हें केवल फुलैरा दूज से ही बनाना शुरू कर सकते हैं। मध्य प्रदेश निमाड़ अंचल में इस बड़बुले, बड़कुले, बड़गुले, बडकुल्ये कहते हैं। जिनमें गोबर से कई प्रकार की आकृतियां बनाकर माला बनाई जाती है। दो दीयों को मिलाकर उसमें कंकड़ डाल कर नारियल बनाया जाता है। उसी तरह पान, बरफी, मठरी, लड्डू सब आकार की बीच में छेद सहित आकृतियां बनाकर सुखाई जाती है फिर सबको पिरोकर उसकी माला बनाकर होली दहन पर समर्पित की जाती है।
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