हालात देख सबको बदल जाना चाहिए…बढ़ते कोरोना संक्रमण पर डॉ. उदय प्रताप सिंह की यह कविता आपको जरूर पढ़नी चाहिए!

एक तरफ जहां कोरोना संक्रमण की वजह से पूरे देश में नकारात्मक भरा माहौल व्याप्त हो चुका है वहीं दूसरी तरफ सकारात्मक माहौल बनाने के लिए देश के बेहरतीन कवि और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष रहे चुके डॉ. उदय प्रताप सिंह की कविता इस दौरान सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। इस कविता को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी ट्वीट किया है। आप भी इस कविता को जरूर पढ़े।   

हालात देख सबको बदल जाना चाहिए

जीना है तो थोड़ा संभल जाना चाहिए

हम जिंदगी और मौत के दरम्यान खड़े है

कोशिश करें कि वख्त ये टल जाना चाहिए

किसकी ख़ता है कितनी?ये तय बाद में करें

पहले सुरंग से तो निकल जाना चाहिए

महबूब से मिलआने की जिद दिल अगर करे

उससे बहाना कीजिये, कल जाना चाहिए

हमको पता है आपका दिल मोम नहीं है

पर दूसरों के दुख में पिघल जाना चाहिए

अब तक हम ठीकठाक हैं ईश्वर की कृपा से

इस धोखे में ज़्यादा न टहल जाना चाहिए

सियासत में जुमलेबाजी का माना,महत्व है

पर झूठ के सांचे में न ढल जाना चाहिए

अवाम के दुख दर्द के शायर हो तुम उदय

इस दौर में भी एक ग़ज़ल जाना चाहिए

बता दें कि उदय प्रताप सिंह का जन्म 1932 में मैनपुरी में हुआ। वे एक कवि, साहित्यकार तथा राजनेता हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश से वर्ष 2002-2008 के लिये समाजवादी पार्टी की ओर से राज्य सभा का प्रतिनिधित्व किया। राज्य सभा में यद्यपि उनका कार्यकाल 2008 में समाप्त हो गया तथापि पूर्णत: स्वस्थ एवं सजग होने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने उन्हें दुबारा राज्य सभा के लिये नामित नहीं किया जबकि वे पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के गुरू रह चुके हैं, उदय प्रताप सिंह जाति से यादव हैं। उदय प्रताप सिंह को उनकी बेवाक कविता के लिये आज भी कवि सम्मेलन के मंचों पर आदर के साथ बुलाया जाता है। साम्प्रदायिक सद्भाव पर उनका यह शेर श्रोता बार-बार सुनना पसन्द करते हैं।

1960 में करहल (मैनपुरी) के जैन इण्टर कॉलेज में वीर रस के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी प्रसिद्ध कविता दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी जिस पर खूब तालियाँ बजीं। तभी यकायक पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी को डाँटते हुए बोला-“बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो सरकार के खिलाफ हैं।” उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से मंच पर चढ़ा और उसने उस दरोगा को उठाकर पटक दिया। विद्रोही जी ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उदय प्रताप सिंह से पूछा-“ये नौजवान कौन है?” तो पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव थे जो उस समय जैन इण्टर कॉलेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह उनके गुरू हुआ करते थे।

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