पार्ट 2- लखनऊ में स्वच्छ विरासत अभियान की खुली पोल, कागजों में सिमट गया एक और सरकारी अभियान

लखनऊ। आखिरकार गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले लखनऊ की विरासतों को स्वच्छ करने का सरकारी अभियान खत्म हो गया लेकिन इन 11 दिनों के बाद आज 24 जनवरी के दिन भी न तो ऐतिहासिक शाहनजफ इमामबाड़े के बाहर सड़क पर लगा गिट्टी-मौरंग और टूटी ईटों का ढेर हटा नजर आया न ही 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय अस्थाई जेल में तबदील किये गये सेंटिनियल कालेज के सामने सड़क पर फैला कूड़ा साफ हुआ।
चंदरनगर गेट के चारों तरफ मौजूद अतिक्रमण का भी यह 11 दिवसीय सरकारी अभियान कुछ बिगाड़ नहीं पाया। रेजीडेंसी की पिछली दीवार के पास लगे कूड़े के ढेर से लेकर रिफह-ए-आम क्लब की बदहाली वैसी की वैसी ही बाकी रह गयी। स्वच्छ भारत मिशन की दावेदारियां हवा में उड़ गयी और आखिरकार सब कुछ ठीक वैसा ही नजर आने लगा है,जैसा इस अभियान के शुरू होने के पहले नजर आता था।
बहरहाल इस दौरान हम अपने पाठकों तक कुछ जानकारियां पहुंचने में सफल रहे। जैसे कि रिफह-ए-आम क्लब की बदहाली के लिए केवल स्थानीय नागरिकों और इसकी प्रबंधन समिति के सदस्यों की सिर फुटव्वल ही जिम्मेदार नहीं है,बल्कि लखनऊ विकास प्राधिकरण में चल रही रिश्वतखोरी और सांस्कृतिक कार्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही भी शामिल है।
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लखनऊ नगर निगम में सफाई के नाम पर चल रही ठेकेदारी प्रथा और बरसों से नये सफाई कर्मियों की नियुक्ति न किए जाने का रहस्य अब किसी तिलिस्म जैसा हो गया है। जिसकी जानकारी पार्षदों से लेकर नगर विकास विभाग के आलाधिकारियों तक के पास नहीं है,कि आखिर खुद को जी-20 की मेजबानी के लिए आगे कर देने वाले इस शहर में सड़क पर झाड़ू लगाने लायक बेरोजगार भी लखनऊ नगर निगम को क्यों ढूंढे नहीं मिल रहे है। कई ऐतिहासिक भवनों के भीतर कूड़े के डम्पिंग ग्राउण्ड नजर आये और ऐतिहासिक आलमबाग भवन के भीतर कूड़ा डम्पिंग वाहन खड़ा नजर आया। गेट के बाहर सब्जी बेचने वाले स्थानीय नागरिक राज किशोर और रामकुमारी ने बताया कि स्थानीय स्तर पर इस स्मारक का प्रयोग शौचालय के रूप में भी किया जा रहा है। यह राज्य पुरातत्व विभाग और लखनऊ नगर निगम के अधिकारियों की मानवीय उदारता का ऐसा उदाहरण है जिस पर शर्म की जानी चाहिए।
कभी लखनऊ कमिश्नरेट इमारत के रुप में अंग्रेजों की सक्रियता की गवाह रही कैसरबाग की रोशनउद्दौला कोठी के सामने मौजूद कूड़े का ढेर इस स्वच्छता अभियान के दौरान और ऊंचा हो गया तथा इसके सामने देश के शहीदों के नाम पर बनाया गया पार्क भी अब तक कूड़े का ढेर ही नजर आ रहा है। कुल मिलाकर दूसरे तमाम अभियानों की तरह लखनऊ नगर विकास विभाग का यह अभियान भी कागजों तक सिमटा रहा और अब देखना यह है,कि जी-20 सम्मेलन के लिए आने वाले मेहमान लखनऊ की विरासत के लिए कैसा अनुभव लेकर वापस लौटते हैं । स्वच्छ विरासत अभियान की सफलता के बारे में जब नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह और निदेशक स्थानीय निकाय नेहा शर्मा से बात करने का प्रयास किया गया तो दोनों से सम्पर्क नहीं हो सका।
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