‘दीपावली’ में बौद्ध उत्सव की शुरूआत कैसे हुई
दिपावली में लोग आज भी "पाडवा उत्सव" मनाकर पुरानी परंपराओं को त्याग कर नये धम्म जीवन की बडे़ जोश के साथ शुरुआत कर देते हैं| सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा इन दो भाई-बहनों ने अपना जीवन धम्म के लिए समर्पित कर दिया था|

दीपावली इस बौद्ध उत्सव की शुरूआत कैसे हुई
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध जब पहली बार अपने ग्रह नगर कपिल वस्तु गये वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था। उनके पिता शुद्धोधन ने जो उस वक्त भी कपिलवस्तु के राजा थे ने बुद्ध के सम्मान में अपने राज्य में एक उत्सब मनाया था। रात्रि में दीपक जलाकर सभी नगर वासियौ ने अज्ञान का अंधेरा मिटाने वाले बुद्ध के लिए अपना सम्मान प्रकट किया था। राजा ने बुद्ध की माता महामाया की याद में उस रात तमाम घरौ में धन भी फिकवाया था। बौद्ध मतौ के अनुसार महामाया ही धन की देवी है।
कनिष्क के दरवारी विद्वान अश्वघोष बुद्ध चरित्र नामक पुस्तक में बुद्ध के कपिलवस्तु आगमन पर स्वागत में जो श्लोक लिखे है। हूवहू वही श्लोक नकल कर वाल्मीकि ने रामायण में लिखकर राम का स्वागत अयोध्या लौटने पर किया है। इस प्रकार। दीपावली का सम्बन्ध भगवान राम से जोड दिया गया। जबकि सम्राट अशोक ने इस दीपावली को पूरे देश में फैलाया था। जैसाकि लोकपहात्ती ग्रंथ में बताया गया है कि, बुद्ध के सम्मान मे सम्राट अशोक ने 84000 स्तुप बनवाये थे और उनके पूर्ण होने पर दीप जलाकर उत्सव किया था। उस उत्सव में अवरोध डालने के लिए मार ने हवा और पानी से आक्रमण किया और दीपों को बुझाने की कोशिश की। तब सम्राट अशोक के मुख्य भिक्खु उपगुप्त ने मार से संघर्ष किया और उसे हराया था।
अशोक के दीपोत्सव का संबंध थायलंड के लोय कोरांग फेस्टिवल से भी है, जो आक्टूबर-नोवम्बर में मनाया जाता है और जिसमें लोग हजारों की संख्या में दीप जलाते हैं।

सम्राट अशोक ने नये बदलाव नहीं किए थे बल्कि प्राचीन बौद्ध परंपरा को अधिक विस्तृत किया था| बुद्धत्व प्राप्ति के बाद कपिलवस्तु में बुद्ध का बडे़ उत्साह के साथ वहां के शाक्यों ने स्वागत किया था और दिप जलाकर अपनी खुशी का इजहार कर दिया था| आगे चलकर सम्राट अशोक ने इस दिपोत्सव के दिन 84000 स्तुपों के पुर्ण होने का उत्सव मनाया था| अशोक ने सभी चौरासी हजार स्तुपों पर दिप जलाकर बुद्ध की कपिलवस्तु भेंट को बडे़ पैमाने पर उत्सव के रुप में मनाया था| इस तरह, दिपावली उत्सव वास्तव में तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक से जुडा हुआ है और इसलिए भारत का यह सबसे बड़ा उत्सव है|
लेखक John S Strong ने अपनी बुक The legends of Upagupta में पेज नं. 202 पर इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है, जो नीचे इस आर्टिकल के साथ जोड दी गई है।
बड़े बड़े विशालकाय स्तुप बनाने के लिए सम्राट अशोक ने अपरिमित धन जुटाया था| इसलिए, उनकी याद में धन जुटाना अर्थात धन की प्रतिकात्मक रुप में राशि जमाना यह उत्सव “धनतेरस” के रूप में मनाया जाता है| बुद्ध जैसे ज्ञानी महापुरुष को जन्म देनेवाली माता महामाया की पुजा दुसरे दिन “लक्ष्मीपुजन” के रूप में की जाती है| बलीराजा सम्राट अशोक ने बुद्ध के प्रतिपद जम्बुद्वीप में अनेक जगहों पर स्थापित कर उनकी पुजा शुरू कर दी थी, इसलिए महाबली अशोक की बुद्ध प्रतिपद परंपरा को याद करते हुए आज भी लोग “बलीप्रतिपदा” परंपरा मनाते है| बुद्ध माता महामाया को लक्ष्मी के रूप में गुप्तोत्तर काल में प्रस्तुत किया गया था| यज्ञ जैसी परंपराओं को बंद कर (उनका पाडाव करके) सम्राट अशोक ने धम्म परंपरा तथा धम्म उत्सवों को अपने धम्मराज्य में शुरू कर दिया था, जिन्हें सम्राट अशोक अपने अभिलेखों में “धम्ममंगल उत्सव” कहते हैं| इसलिए, दिपावली में लोग आज भी “पाडवा उत्सव” मनाकर पुरानी परंपराओं को त्याग कर नये धम्म जीवन की बडे़ जोश के साथ शुरुआत कर देते हैं| सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा इन दो भाई-बहनों ने अपना जीवन धम्म के लिए समर्पित कर दिया था| इसलिए, उनकी याद में लोग आज भी “भाईदूज” का उत्सव मनाते हैं और सम्राट अशोक के धम्मराज्य की याद में “इडा पिडा जाए और फिर से महाबली सम्राट अशोक का धम्मराज्य निर्माण हो” ऐसी कामना करते हैं| सम्राट अशोक ही भारत के महाबलशाली ऐतिहासिक सम्राट थे, जिन्हें महाबली सम्राट या बलीराजा कहा जाता है|
इस तरह, दिपावली का संपुर्ण उत्सव तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक से जुडा़ हुआ उत्सव है
लेखक: राजवीर सिंह