कोविड-19 मृत्यु दर: मिथक बनाम तथ्य, पढ़िए क्या? है पूरी सच्चाई।


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हमेशा राज्यों को सलाह दी है कि वे अपने अस्पतालों में मृत्यु का लेखा-जोखा रखें और ऐसे किसी भी मामले या मौतों की रिपोर्ट करें जो छूट गए हों।

भारत आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का पालन करता है जो सभी कोविड-19 मौतों से जुड़े सही आंकड़ों को दर्ज करने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित आईसीडी-10 कोड पर आधारित है। भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों को दर्ज करने की एक मजबूत प्रणाली है।


हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह आरोप लगाया गया है कि भारत में महामारी के दौरान होने वाली मौतों की संख्या लाखों में हो सकती है, और आधिकारिक तौर पर कोविड-19 से हुई मौतों को ‘बेहद कम’ बताया गया है।

इन समाचार रिपोर्टों में कुछ हालिया अध्ययनों के निष्कर्षों का हवाला देते हुए, अमेरिका और यूरोपीय देशों की आयु-विशिष्ट संक्रमण मृत्यु दर का उपयोग भारत में सीरो-पॉजिटिविटी के आधार पर अधिक मौतों की गणना के लिए किया गया है। मौतों का एक्सट्रपलेशन किसी भी संक्रमित व्यक्ति के मरने की संभावना पूरे देशों में समान है, विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारकों जैसे कि नस्ल, जातीयता, जनसंख्या के जीनोमिक नियम, पिछले जोखिम स्तरों, उस आबादी में विकसित अन्य बीमारियों और संबंधित प्रतिरक्षा के बीच परस्पर क्रिया को खारिज करते हुए एक दुस्साहसिक धारणा पर किया गया है।

इसके अलावा, सीरो-प्रेवलन्स अध्ययनों का उपयोग न केवल कमजोर आबादी में संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए रणनीति और उपायों का मार्गदर्शन करने के लिए किया जाता है, बल्कि मौतों को अतिरिक्त आधार के रूप में भी उपयोग किया जाता है। अध्ययनों में एक और संभावित चिंता यह भी है कि एंटीबॉडी समय के साथ कम हो सकती हैं, जिससे वास्तविक प्रसार को कम करके आंका जा सकता है और संक्रमण मृत्यु दर के अनुरूप अधिक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके अलावा, रिपोर्ट का यह भी मानना है कि सभी अतिरिक्त मृत्यु दर कोविड-19 के कारण हुई मौतें हैं, जो तथ्यों पर आधारित नहीं है और पूरी तरह से भ्रामक है। अत्यधिक मृत्यु दर एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर का वर्णन करने के लिए किया जाता है और इन मौतों को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार ठहराना पूरी तरह से भ्रामक है।

भारत के पास पूरी तरह से संपर्क का पता लगाने की रणनीति है। सभी प्राथमिक संपर्कों, चाहे रोग के लक्षण वाले या बिना लक्षण वाले लोगों का परीक्षण कोविड-19 के लिए किया जाता है। सही पाए गए मामले वे हैं जो आरटी-पीसीआर में पॉजिटिव पाए जाते हैं, जो कि कोविड-19 परीक्षण का उपयुक्त मानक है। संपर्कों के अलावा, देश में 2700 से अधिक परीक्षण प्रयोगशालाओं की विशाल उपलब्धता है और, जो कोई भी जांच करवाना चाहता है वह वहां जाकर जांच करवा सकता है। इसके लक्षणों के बारे में विशाल आईईसी और चिकित्सा देखभाल तक पहुंच ने सुनिश्चित किया है कि लोग जरूरत पड़ने पर अस्पतालों तक पहुंच सकें।

भारत में मजबूत और क़ानून आधारित मृत्यु पंजीकरण प्रणाली को देखते हुए, हो सकता है कि संक्रामक रोग और उसके प्रबंधन के सिद्धांतों के अनुसार कुछ मामलों का पता नहीं चल सकता है, लेकिन मौतों की जानकारी ना होने की संभावना नहीं है। यह रोगियों की मृत्यु दर में भी देखा जा सकता है, जो कि 31 दिसंबर 2020 तक 1.45 प्रतिशत थी और अप्रैल-मई 2021 में कोविड की दूसरी लहर में अप्रत्याशित वृद्धि के बाद भी, कोविड से मृत्यु दर आज भी 1.34 प्रतिशत है।

इसके अलावा, भारत में दैनिक नए मामलों और मौतों के लिए रिपोर्टिंग एक विशेष दृष्टिकोण का अनुसरण करती है, जहां जिले राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालय को निरंतर आधार पर मामलों और मौतों की संख्या के बारे में जानकारी देते हैं। मई 2020 की शुरुआत में, दर्ज की जा रही मौतों की संख्या में विसंगति या भ्रम से बचने के लिए, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सभी मौतों से जुड़े सही आंकड़ों को दर्ज करने के लिए ‘भारत में कोविड-19 से संबंधित मौतों के सही आंकड़ों के लिए  डब्ल्यूएचओ द्वारा मृत्यु दर कोडिंग के लिए अनुशंसित आईसीडी-10 कोड के अनुसार दिशा-निर्देश’ जारी किया।

कल राज्यसभा में अपने बयान में, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मंडाविया ने कोविड-19 मौतों को छिपाने के आरोपों का खंडन किया है और कहा कि केंद्र सरकार केवल राज्य सरकारों द्वारा भेजे गए डेटा को संकलित और प्रकाशित करती है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय बार-बार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को औपचारिक संचार, कई वीडियो कॉन्फ्रेंस और निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार मौतों के आंकड़ों को दर्ज करने के लिए केंद्रीय दलों की तैनाती के माध्यम से सलाह देता रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने नियमित रूप से जिलावार मामलों और मौतों की दैनिक आधार पर निगरानी के लिए एक मजबूत रिपोर्टिंग तंत्र की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। राज्यों को सलाह दी गई है कि वे अपने अस्पतालों में पूरी तरह से ऑडिट करें और किसी भी मामले या मौतों की रिपोर्ट करें जो जिला और तिथि-वार विवरण के साथ छूट गए हो, ताकि डेटा-संचालित निर्णय लेने में मार्गदर्शन किया जा सके। दूसरी लहर के चरम पर पहुंचने के दौरान, संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली चिकित्सा सहायता की आवश्यकता वाले मामलों के प्रभावी नैदानिक प्रबंधन पर केंद्रित थी, और आकंड़ों के बारे में सही सूचना देने या उन्हें सही-सही दर्ज करने की प्रक्रिया से समझौता किया गया हो सकता है जो कि महाराष्ट्र, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में हाल में हुई मौतों के आंकड़ों से स्पष्ट है। 

इस रिपोर्टिंग के अलावा, क़ानून आधारित नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) की मजबूती यह सुनिश्चित करती है कि देश में सभी जन्म और मृत्यु पंजीकृत हों। सीआरएस डेटा संग्रह, सफाई, मिलान और संख्याओं को प्रकाशित करने की प्रक्रिया का अनुसरण करता है, हालांकि यह काफी समय लेने वाली प्रक्रिया है, लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी मौत दर्ज होने से न छूटे। गतिविधि के विस्तार और आयाम के लिए, संख्याएं आमतौर पर अगले वर्ष प्रकाशित की जाती हैं।

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