ज्येष्ठ मास का हुआ शुभारम्भ, इस बार 4 मंगलवार का है संयोग

सीतापुर। ज्येष्ठ मास पौराणिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। इस बार ज्येष्ठ मास में 19 मई को अमावस्या तिथि पर वट सावित्री पूजन का संयोग है जिसके बारे में कहा जाता जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या को अपने पति की दीर्घायु के लिए विवाहित स्त्रियां अक्षय वट (बरगद) के पेड़ से सावित्री का विधिविधान सहित पूजा करती है इसके साथ 30 मई को गंगा दशहरा का संयोग है।

मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी को गंगा जी का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था इस संयोग पर गंगा जी में स्नान करने से मनुष्य के दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है।इसी पावन मास में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी 31 मई को भीमसेनी निर्जला एकादशी का व्रत होगा। इस व्रत के सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार पांडवों में भीमसेन नागलोक पहुंचकर दशकुंडो का जल पीकर 10 हजार हाथियों के समान बलशाली हो गए। चूंकि भीम अपनी भूख के कारण कोई भी व्रत नही रखते थे। अतः प्रभु श्रीकृष्ण के आदेश से ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का निर्जला व्रत किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी निर्जला एकादशी भी कहा जाता है इस व्रत को रहने से वर्ष के सभी एकादशी व्रतों का पुण्य फल प्राप्त होता है।

रामभक्त हनुमान का प्रिय मास है ज्येष्ठ:

भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान को ज्येष्ठ मास प्रिय है। इस मास में प्रत्येक मंगलवार को हनुमत मन्दिरो में रामभक्त हनुमान को वैदिक रीति से चोला सेवा अर्पित कर सुगन्धित पुष्पो, आकर्षक झांकियो के माध्यम से विशेष श्रंगार होता है व पूरे महीने प्रभु हनुमान को भोग लगाकर ऐसी तपती गर्मी में शर्बत भोग भंडारों का दौर चलता रहता है। पौराणिक हनुमान गढ़ी के महंत बजरंग दास ने बताया कि इस पुनीत ज्येष्ठ मास में रामभक्त हनुमान का प्रत्येक मंगवार को अतिविशिष्ट महाश्रंगार कराया जायेगा। साथ ही पूरे महीने बाबा की असीम अनुकम्पा से भक्तो के लिए भोग भंडारों का दौर चलता रहेगा इस पवित्र मास में प्यासे भक्तो को जल पिलाने से हमारा रामभक्त हनुमान अत्यंत प्रसन्न होता है।

हनुमान गढ़ी का आध्यात्मिक महत्व:

रामायण काल में जब एक बार अहिरावण मायाजाल से प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण का हरण कर पातालपुरी में ले जाता है तो प्रभु हनुमान पातालपुरी में जाते है और वहां द्वार पर तैनात मकरध्वज से युद्ध कर अंदर जाकर दुष्ट अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण को मुक्त कराकर नैमिषारण्य तीर्थ में ऋषियों सन्तों का शुभाशीर्वाद प्राप्त कर लंका की ओर प्रस्थान करते है। यहाँ प्रभु हनुमान की दक्षिण की ओर मुख किये 21 हाथ की मूर्ति है जिनके कन्धों पर प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण विराजित है व पेरों के नीचे अहिरावण मृत पड़ा है। इनके दर्शन मात्र से राहु केतु आदि ग्रह शांत होते है व भक्त हनुमत कृपा का पात्र बनता है।

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