जानिए, ऊसर भूमि में कैसे करें खेती एवं उसके सुधारने करने के उपाय?

प्रदेश में लगभग 5.62 लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि है जो अब भी हरित क्रान्ति एवं शस्य श्यामल स्वरूप से वंचित है। इन ऊसर क्षेत्रों में से कुछ क्षेत्रों में खरीफ में धान तथा कुछ क्षेत्रों में खरीफ एवं रबी में क्रमशः धान-गेहूं की खेती कृषक निजी संसाधनों का उपयोग करके करते हैं, परन्तु उत्पादन का स्तर अत्यन्त ही न्यून होता है। अधिकाशं ऊसर क्षेत्र का बंजर स्वरूप अब भी विद्यमान है। इन क्षेत्रों को सुधार कर कृषि के अंतर्गत लाया जा सकता है। ऊसर भूमि की सुधार का कार्य जायद के मौसम में जनवरी, फरवरी से प्रारम्भ हो जाता है। ऊसर सुधार का कार्य कई कार्य मदों में जुड़ा हुआ है, जिसमें क्षेत्र का चयन, मृदा, परीक्षण, प्रक्षेत्र विकास, सिंचाई सुविधा का सृजन, जल निकास नाली का निमार्ण, रासायनिक मृदा सुधारकों का प्रयोग, हरी खाद एवं फसल उत्पादन सम्मिलित है।

इन समस्त कार्यों को निम्न समय सारिणी के अनुसार सम्पन्न करना चाहिए।
क्रम.सं. | कार्यमद | अवधि | |
1 | ऊसर क्षेत्र का चयन, सर्वेक्षण, नियोजन सिंचाई सुविधा का सृजन निवेशों की व्यवस्था इत्यादि। | जनवरी, फरवरी | |
2 | प्रक्षेत्र विकास (मेड़ बन्दी, समतलीकरण) एवं जल निकास नाली का निमार्ण | फरवरी से मार्च | |
3 | रासायनिक मृदा सुधारकों का प्रयोग एवं हरी खाद। | अप्रैल से जून | |
4 | धान की रोपाई | जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई तक | |
सीमान्त ऊसर भूमि के लिए जिसमें पहले से खेती हो रही है, निम्न सारणी के अनुसार कार्य सम्पन्न किया जा सकता है। | |||
1 | स्थान का चयन | ऊसरीली भूमि का चयन जनवरी/फरवरी में उस पर उगी फसल को देखकर भी किया जा सकता है। सुधार हेतु संहत क्षेत्र का चयन किया जाए। | |
2 | मिट्टी परीक्षण हेतु नमूनों को एकत्रीकरण और विश्लेषण | जनवरी से मार्च | |
3 | मेड़ों की मरम्मत तथा समतलीकरण यदि आवश्यक हो | फरवरी से मार्च | |
4 | मृदा सुधारक रसायन का प्रयोग तथा लीचिंग | मार्च-अप्रैल | |
5 | हरी खाद हेतु ढेंचा की बुवाई | अप्रैल | |
6 | ढैंचा की पलटाई | मई के अन्तिम सप्ताह तक | |
7 | धान की रोपाई | जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक प्रजाति के अनुसार। | |
क्षेत्र की बनावट (टोपोग्राफी) को देखते हुए यह तय कर लिया जाय कि किस स्थान पर नलकूप व किस स्थान पर सिंचाई जल निकास नाली व सड़क बनाना उचित होगा। ऐसे स्थान को नियोजित प्लान के अनुसार सर्वप्रथम मेड़बन्दी करके खेत को समतल कर लेना चाहिए। यदि ढाल अधिक हो तो खेत का आकार छोटा अन्यथा 0.4 से 0.5 हेक्टेर आकार के खेत बनाये जाए। मेड़ मजबूत बनायी जाए ताकि यह वर्षाकाल में जल बहाव के कारण बह न जाए। मेंड़ 165×45×30 से०मी० या 120×45×30 सेमी० जिसका क्रास सेक्शन 0.44 या 0.34 मीटर होता है, उपयुक्त होगी।
मेड़बन्दी का कार्य पूरा हो जाने के पश्चात् खेत को 15-20 से०मी० गहरा जोतकर लेवलर की सहायता से समतल कर लेना चाहिए और लेविल को खेत में पानी भरके चेक कर लेना चाहिए। नई तोड़ी गई ऊसरीली भूमि को 15-20 से०मी० की गहरी जुताई आवश्यक है जिससे रिसाव क्रिया (लीचिंग) में सुविधा हो।
ऊसर सुधार में जल निकास का बहुत अधिक महत्व है, यह जल निकास नाली मनुष्य के गुर्दे की तरह काम करती है जो खेत के हानिकारक घुलनशील लवणों को बाहर निकालती है। जल निकास नाली का निर्माण चकरोड के दोनों ओर खेत की सतह से 60-90 से०मी० गहरी और 1.2 मीटर चौड़ी होनी चाहिए। इन जल निकास नालियों का नियोजन इस प्रकार किया जाए जिससे खेत का लवणयुक्त पानी किसी नदी नाले में बहा दिया जाए।
मृदा सुधारक रसायन
ऊसर सुधार हेतु जिप्सम और रसायन का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। ऊसर योजना वाले जनपदों में मृदा सुधारक (जिप्सम/पाइराइट) का प्रयोग मिट्टी परीक्षण परिणाम के आधार पर करना चाहिए। इसके प्रयोग के पूर्व खेत में 5-6 मीटर चौड़ी क्यारियां लम्बाई में बना लेना चाहिए। मृदा परीक्षण परिणाम की संस्तुति के अनुसार मृदा सुधारक (पायराइट/जिप्सम) का प्रयोग किया जाये।
जिप्सम का प्रयोग
इसे फैलाने के बाद तुरन्त कल्टीवेटर या देशी हल से भूमि की ऊपरी 8-10 से०मी० की सतह में मिलाकर और खेत को समतल करके पानी भर करके रिसाव क्रिया सम्पन्न करना चाहिए। पहले खेत में 12-15 से०मी० पानी भरकर छोड़ देना चाहिए। 7-8 दिनों बाद जो पानी बचे उसे जल निकास नाली द्वारा बाहर निकालकर पुनः 12-15 से०मी० पानी भरकर रिसाव क्रिया सम्पन्न करना चाहिए।