सवाल बेहद गंभीर हैं

सवाल बेहद गंभीर हैं

सवाल बेहद गंभीर हैं
तो क्या यह समझा जाए कि इन रिपोर्टों में किए गए दावे सही हैं? अगर ऐसा है, तो यह सवाल सवाल अहम हो जाएगा कि इस देश पर सचमुच किसका शासन है? क्या क्रोनी पूंजीवाद अब उस अवस्था में पहुंच गया है, जब राजकाज में प्राथमिक भूमिका राजनीतिक दल या सरकार की नहीं रह गई है?
भारत में असल में राज किसका है? क्या भारतीय जनता पार्टी एक स्वतंत्र राजनीतिक दल के रूप में शासन कर रही है, या वह किन्हीं बेहद मजबूत निहित स्वार्थों की तरफ से राज कर रही है? पत्रकारों के एक समूह की खोजी रिपोर्टों की शृंखला से ये सवाल उठे हैं। यह भी कम गौरतलब नहीं है कि रिपोर्टों की इस सीरीज को किसी भारतीय मीडिया संस्थान के बजाय टीवी चैनल अल-जजीरा अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर रहा है। इन रिपोर्टों से जो अहम बातें सामने आई हैं, वे हैं- भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस की फंडिंग से ऐसे संस्थान बनाए गए, जिन्होंने भाजपा के पक्ष में चुनावी और उसके माहौल बनाने वाले अन्य इश्तहार सोशल मीडिया पर दिए। इनमें से कुछ विज्ञापनों में भाजपा के मुख्य एजेंडे को आगे बढ़ाने वाली- सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काए रखने वाली- सामग्रियां शामिल थीं। सबसे बड़ी टेक कंपनी फेसबुक ने छद्म संस्थाओं की तरफ दिए गए विज्ञापनों को प्रकाशित किया और इस तरह उसने खुद अपने नियम का उल्लंघन किया। जबकि कांग्रेस की तरफ से ऐसे विज्ञापन देने वाली छद्म संस्थाओं पर उसने इस नियम को सख्ती से लागू किया। यानी उसने एकतरफा भूमिका निभाई।
तीसरी बात यह सामने आई है कि फेसबुक ने भाजपा के पक्ष में विज्ञापनों को रियायती दरों पर प्रकाशित किया। चौथा पहलू यह है कि फेसबुक ने अपने एल्गोरिद्म इस तरह सेट किए, जिससे दर्शकों का भाजपा के पक्ष में दिए विज्ञापनों पर अधिक ध्यान जाए और वहां टिका रहे। अब यह भी उल्लेख यहां जरूरी है कि फेसबुक कंपनी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज में भारी निवेश कर रखा है। इस तरह इन दोनों कंपनियों के स्वार्थ आपस में जुड़े हुए हैँ। ये गौरतलब है कि रिपोर्टर्स कलेक्टिव नामक पत्रकारों के समूह की रिपोर्ट सीरिज का अल-जजीरा पर प्रकाशन सोमवार को शुरू हुआ था। बुधवार तक उन कंपनियों या भाजपा की तरफ से इन रिपोर्टों में लगाए गए आरोपों का कोई खंडन सामने नहीं आया। तो क्या यह समझा जाए कि इन रिपोर्टों में किए गए दावे सही हैं? अगर ऐसा है, तो यह सवाल सवाल अहम हो जाएगा कि इस देश पर सचमुच किसका शासन है? क्या क्रोनी पूंजीवाद अब उस अवस्था में पहुंच गया है, जब राजकाज में प्राथमिक भूमिका राजनीतिक दल या सरकार की नहीं, बल्कि परदे के पीछे के निहित स्वार्थों की बन गई है?

SOURCE: NEWS AGENCY

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